Tuesday, September 14, 2010

कारगिल की गूँज

कारगिल की गूँज

तेरे नापाक इरादों को हम
भांप गए ऐ पाकिस्तान |
घुसपैठ की आदत छोड़ दे वरना
हो जायेगा तू वीरान ||
यह कहते थे और कहते हैं
कश्मीर नहीं तुझको देंगे |
कश्मीर तो क्या सीमा- रेखा की
धूल नहीं तुझको देंगे ||

*

क्या भूल गया तू अब तक की हर
हारी हुयी लड़ाई को ?
शायद तू अब भी जान न पाया
भारत की अंगडाई को||
सन् इकहत्तर में बांग्लादेश
आज़ाद हमीं ने करवाया |
खामोश देखता रहा मगर
तू बाल न बांका कर पाया||

*

दो- चार पटाखे क्या छोड़े
सोचा कि हम डर जायेंगे ?
मर गए मारने वाले
क्या तेरे मारे मर जायेंगे?
चीन और अमरीका दोनों
कब तक तुझे बचायेंगे?
देते- देते हथियार तुझे
वे खुद इक दिन थक जायेंगे|

*

औकात में रहना सीख ले बच्चे
वरना तू पछतायेगा |
मुंह की हरदम खायेगा
तू बाप से जो टकराएगा ||
जो फिर कभी भारत की धरती
पर तू नज़र उठाएगा |
सौगंध हमें भारत माँ की
तू बन इतिहास रह जाएगा
||


—शिव नारायण वर्मा

1 comment:

  1. Amazing poem and amazing elaboration here. Thank you blogger

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