इंजिनियर : एक काव्य कथा (संपूर्ण भाग )
Tuesday, September 21, 2010
इंजिनियर : एक काव्य कथा (Engineer: A poetic narrative )
भरने लगा अब पग वह , घरौंदे लगा बनाने
घर में बजी शहनाई , तब फिर बंटी मिठाई |
लेकिन बहू मॉडर्न थी, मम्मी बना न पाई |
इंजिनियर था आखिर , घर दूसरा बनाया |
मम्मी के सारे सपने, अब चूर हो गए थे |
पापा ने पकड़ी खटिया, हड्डी थी उनकी टूटी |
अगले ही साल बीवी के, पैर हुए भारी |
बीवी थी लेबर रूम में, फिर नर्स बाहर आई |
Tuesday, September 14, 2010
कारगिल की गूँज
कारगिल की गूँज
तेरे नापाक इरादों को हम
भांप गए ऐ पाकिस्तान |
घुसपैठ की आदत छोड़ दे वरना
हो जायेगा तू वीरान ||
यह कहते थे और कहते हैं
कश्मीर नहीं तुझको देंगे |
कश्मीर तो क्या सीमा- रेखा की
धूल नहीं तुझको देंगे ||
*
क्या भूल गया तू अब तक की हर
हारी हुयी लड़ाई को ?
शायद तू अब भी जान न पाया
भारत की अंगडाई को||
सन् इकहत्तर में बांग्लादेश
आज़ाद हमीं ने करवाया |
खामोश देखता रहा मगर
तू बाल न बांका कर पाया||
*
दो- चार पटाखे क्या छोड़े
सोचा कि हम डर जायेंगे ?
मर गए मारने वाले
क्या तेरे मारे मर जायेंगे?
चीन और अमरीका दोनों
कब तक तुझे बचायेंगे?
देते- देते हथियार तुझे
वे खुद इक दिन थक जायेंगे|
*
औकात में रहना सीख ले बच्चे
वरना तू पछतायेगा |
मुंह की हरदम खायेगा
तू बाप से जो टकराएगा ||
जो फिर कभी भारत की धरती
पर तू नज़र उठाएगा |
सौगंध हमें भारत माँ की
तू बन इतिहास रह जाएगा ||
—शिव नारायण वर्मा
Subscribe to:
Posts (Atom)